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Uniform Civil Code: देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर सियासी पारा चढ़ हुआ है. संभावना जताई जा रही है कि केंद्र सरकार मानसून सत्र के दौरान संसद में यूनिफॉर्म सिविल कोड पेश कर सकती है. इसपर विभिन्न दलों के ओर से प्रतिक्रिया आ रही है. अब BSP चीफ मायावती ने भी लखनऊ में बयान जारी कर इसपर पार्टी का पक्ष रख दिया है.

मायावती ने समान नागरिक संहिता लाने का समर्थन किया है बीएसपी चीफ ने कहा, “हमारी पार्टी यूसीसी के विरोध में नहीं है. लेकिन उसे जबरन थोपने का प्रावधान बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर के संविधान में निहीत नहीं है. इसके लिए जागरुकता और आम सहमती को श्रेष्ठ माना गया है. जिसपर अमल नहीं करके संकीर्ण स्वार्थ की राजनीति करना देश हित में सही नहीं है, जो कि इस समय की जा रही है. संविधान की धारा 44 में UCC बनाने का प्रयास तो वर्णित हैं मगर इसे थोपने का नहीं है.”

कांग्रेस यूसीसी पर वेट एंड वॉच की रणनीति अपना रही

दरअसल, समान नागरिक संहिता का मसौदा सामने नहीं आया है. इसमें क्‍या होगा और नहीं, इसके बारे में अभी कांग्रेस पार्टी या विपक्ष के पास कोई जानकारी नहीं है. ऐसे में इस मुद्दे पर कुछ भी बोलना अंधेरे में तीर चलाने जैसे होगा. फिर इस साल देशभर के पांच राज्‍यों में विधानसभा चुनाव हैं और अगले साल देश में लोकसभा चुनाव होने हैं. भाजपा ने लोकसभा चुनावों के लिए रणनीति तैयार कर ली है और उस पर काम भी शुरू कर दिया है. ऐसे में कांग्रेस भी हर मुद्दे पर बड़ी सावधानी से बयानबाजी कर रही है. समान नागरिक संहिता पर एक गलत बयान, कांग्रेस पर आगामी चुनावों के लिए बेहद भारी पड़ सकता है. इतिहास इसका गवाह रहा है. शायद यही वजह है कि कांग्रेस यूसीसी पर वेट एंड वॉच की रणनीति अपना रही है.   

यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड संविधान के नीति निर्देशक तत्व का हिस्सा है

यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड का ज़िक्र संविधान में भी दिखता है. संविधान के निर्माताओं ने यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड को नीति निर्देशक तत्वों के तहत भविष्य के एक लक्ष्य की तरह छोड़ दिया था. संविधान के अनुच्छेद 44 में नीति निर्देशक तत्वों के तहत कहा गया है कि भारत के राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड को सुरक्षित करने का प्रयास करना चाहिए. लेकिन साथ ही अनुच्छेद 37 में कहा गया है कि नीति निर्देशक तत्वों का उद्देश्य लोगों के लिए सामाजिक आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना और भारत को एक कल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित करना है. गौरतलब है कि नीति निर्देशक तत्व सरकार की ज़िम्मेदारी को दिखाते हैं लेकिन इन पर अमल ज़रूरी नहीं है. लेकिन देर-सबेर अमल हो सके तो बेहतर है. मौलिक अधिकारों की तरह इन्हें लेकर न्यायालय में सरकार को चुनौती नहीं दी जा सकती है.

यूसीसी कैसे बनेगा?

  • विधि आयोग और उत्तराखंड कानून (अगर बनता है) के आधार पर केंद्र सरकार अपना विधेयक बना सकती है.
  • उस विधेयक को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद संसद में रखा जाएगा.
  • संभवत यह शीतकालीन सत्र में ही हो.
  • संसद में रखने के बाद सरकार पर है कि इसे स्टैंडिंग कमेटी में भेजे या न भेजे.
  • अनुच्छेद 370 के खात्मे के विधेयक को स्टैंडिंग कमेटी में नहीं भेजा गया था.
  • संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिलने के बाद यह कानून बनेगा.
  •  इस बीच, कुछ अन्य बीजेपी शासित राज्य उत्तराखंड के कानून के आधार पर अपने यहां कानून बना सकते हैं.

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