कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की तारीखें आ गई हैं। यहां 10 मई को वोटिंग होगी, नतीजे 13 मई को आएंगे। कांग्रेस 25 मार्च को ही 124 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर चुकी है। BJP की पहली लिस्ट अप्रैल के पहले हफ्ते में आ सकती है। कर्नाटक में अभी BJP की ही सरकार है। पार्टी ने चुनाव की जिम्मेदारी 80 साल के बीएस येदियुरप्पा को सौंपी है, क्योंकि ऐसा करना BJP की मजबूरी है।
येदियुरप्पा की लिंगायतों में मजबूत पकड़ है और लिंगायत सरकार बनाने में अहम रोल अदा करते हैं। BJP सरकार ने चुनाव के चंद दिनों पहले मास्टरस्ट्रोक खेलते हुए मुस्लिमों को मिलने वाला 4% रिजर्वेशन भी खत्म कर दिया। इसे लिंगायतों और वोक्कालिगा के बीच बांट दिया गया है। पार्टी का टारगेट 150 सीटें जीतने का है। हालांकि, सर्वे रिपोर्ट्स में अभी BJP को कांग्रेस से पीछे बताया जा रहा है, लेकिन बहुमत किसी भी पार्टी को मिलता नहीं दिख रहा।
ये चुनाव येदियुरप्पा के लिए फाइनल टेस्ट की तरह हैं। वे पहले ही चुनावी राजनीति से संन्यास ले चुके हैं और अब बेटों के लिए जगह बना रहे हैं। येदियुरप्पा अगर इस टेस्ट में पास हुए तो उनके बेटों का रास्ता आसान हो जाएगा। उन्होंने इस बार BJP को 130 सीटें जिताने का टारगेट रखा है। हालांकि, 2018 में सरकार बनाने वाले कांग्रेस और JD(S) अभी गठबंधन पर चुप हैं। अगर दोनों पार्टियां साथ आईं, तो BJP की मुश्किलें बढ़ेंगीं।
कर्नाटक की सियासत तीन कम्युनिटी के इर्द-गिर्द घूमती है। लिंगायत, वोक्कालिगा और कुरबा। येदियुरप्पा लिंगायत कम्युनिटी के सबसे बड़े नेता हैं। कर्नाटक में इस कम्युनिटी की पॉपुलेशन करीब 17% है। यह कम्युनिटी BJP सपोर्टर मानी जाती है और इसे BJP से जोड़ने का काम येदियुरप्पा ने ही किया था। पहले लिंगायत कांग्रेस के साथ थे। यह कम्युनिटी कर्नाटक विधानसभा की 224 में से 90 से 100 सीटों पर असर डालती है।
राज्य में छोटे-बड़े 500 से ज्यादा लिंगायत मठ हैं। चुनाव के पहले हर पार्टी के नेताओं का इन मठों में आना-जाना शुरू हो जाता है। बड़े मठों पर येदियुरप्पा की स्वीकार्यता एक जैसी है। साल 2021 में जब उन्हें CM पद से हटाया गया था, तब भी उनके समर्थन में ज्यादातर मठ लामबंद हो गए थे। बाद में उन्होंने ही समर्थकों को समझाकर शांत कराया था।
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