Varanasi Ramlila : वाराणसी के रामनगर की रामलीला विश्व प्रसिद्ध है। यह रामलीला जितनी अनूठी है, उतने ही खास इसे देखने वाले भक्त हैं, जो बीते कई दशकों से इस अद्भुत लीला को देखने यहां आते हैं। आधुनिकता के दौर से अलग आज भी पेट्रोमैक्स की रोशनी में बिना स्टेज और साउंड सिस्टम के यहां रामलीला का मंचन होता है। रामनगर की रामलीला में बारहवें दिन के प्रसंग के मुताबिक भरत ननिहाल से अयोध्या लौटे। माता की करनी सुनकर भरत अपने आप को कोसने लगे। वह कौशल्या के पास गए तो उन्होंने उनको समझाया कि होनी को कोई नहीं टाल सकता।

भरत जैसा आदर्श चरित्र विरल ही मिलता है। उनके भातृ प्रेम और त्याग की युगों युगों से मिसाल दी जा रही है। कैकई को क्या पता था कि उसके सारे स्वांग धरे रह जाएंगे? भरत उसका ऐसा प्रतिकार करेंगे। मंथरा तो शत्रुध्न के हाथों पिट भी गई। राम के बिना भरत को अयोध्या भायी ही नहीं सो सभी को लेकर चल दिए श्रीराम को मना कर वापस लाने। रामनगर की रामलीला में बारहवें दिन के प्रसंग के मुताबिक भरत ननिहाल से अयोध्या लौटे। माता की करनी सुनकर भरत अपने आप को कोसने लगे। वह कौशल्या के पास गए तो उन्होंने उनको समझाया कि होनी को कोई नहीं टाल सकता। गुरु वशिष्ठ ने उन्हें समझाया कि लाभ,हानि, जीवन मरण यश,अपयश सब विधाता ही करता है इसके लिए किसी को दोष देना व्यर्थ है। जो व्यक्ति उचित अनुचित का विचार छोड़ पिता की आज्ञा का पालन करता है वह सुख का भागी होता है। वह भरत को राज सिंहासन संभालने की सलाह देते हैं। लेकिन भरत राज सिंहासन संभालने से इनकार कर देते हैं।

वह परिजनों को लेकर राम को मनाने के लिए वन की ओर चल पड़े। वन में ही श्रीराम के राजतिलक के लिए चतुरंगिणी सेना और चारों तीर्थों का जल भी लेकर चलते हैं। भरत को आते देख निषाद राज का दूत उन्हें सूचना देता है कि भरत अपनी सेना के साथ आ रहे हैं तो निषादराज सेवक से अपना धनुष बाण मंगा लेते हैं। लेकिन भरत से मिलकर उनका भ्रम दूर हो जाता है। गुरु वशिष्ठ भरत को बताते हैं कि निषादराज राम के मित्र हैं। भरत जी रथ से उतरकर उनसे मिलते हैं। निषादराज भरत के साथ सबको लेकर गंगा दर्शन कर गंगा जी को प्रणाम करते हैं। भरत की दशा देखकर निषादराज उनसे कहते हैं कि आप दुःखी मत होइए। भरत गंगा पार करके उस रास्ते सिर नवाते आगे बढ़े जिधर से राम गुजरे थे। सभी भारद्वाज मुनि के आश्रम पहुंचते हैं। भोजन करने के बाद सभी वही विश्राम करते हैं। यहीं पर आरती होती है।
देवताओं ने की मां सरस्वती से विनती, मंथरा की मतिफेरना
श्री आदि लाट भैरव रामलीला वरुणा संगम काशी के तत्वावधान में संचालित लीला के दूसरे दिन राजा दशरथ का दर्पण देखना व चौथपन का अनुभव कर राम को युवराज पद देने का निर्णय से लीला आरंभ हुई। उधर देवताओं में कौतूहल माता सरस्वती से विनती, मां सरस्वती का अयोध्या आगमन कुबरी की बुद्धि फेरना। कुटिल कुबरी के कपटपूर्ण तर्कों से रानी कैकेयी के मन में द्वेष। कैकई का हठपूर्वक कोपभवन में वास। लीला मंचन के दौरान प्रसंगानुसार रामायण के चौपाइयों का गान होता रहा।अंत में आरती की गई। व्यास दयाशंकर त्रिपाठी रहें। समिति की ओर से प्रधानमंत्री कन्हैयालाल यादव, श्याम सुंदर, केवल कुशवाहा, रामप्रसाद मौजूद रहे।