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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव के रिजल्ट आने के बाद बीजेपी (BJP) में मंथन का दौर शुरू हो गया है. हालांकि रिजल्ट ने समाजवादी पार्टी (SP) और बीएसपी (BSP) के तमाम दावों पर सवाल खड़े कर दिए हैं. लेकिन कुछ जगहों पर रिजल्ट ने बीजेपी को चौंकाया है. कई जगहों पर पार्टी के पुराने गढ़ में हार हुई है. लेकिन इसके बाद अब पार्टी ने मंथन शुरू कर दिया है. इसके लिए कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई है.

नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे अगले साल होने वाले लोक सभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा के लिए अपने सांसदों का रिपोर्ट कार्ड तय करने का पैमाना भी होंगे। वर्ष 2014 व 2019 में हुए लोक सभा चुनावों में केंद्र में भाजपा की सरकार बनाने में उप्र ने बड़ी भूमिका निभाई थी। केंद्र में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने की कोशिश में लगी भाजपा का सर्वाधिक 80 लोक सभा सीटों वाले उप्र पर खास फोकस है। 

आंकड़ों पर नजर डालें तो सभी 17 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है. लेकिन पार्टी के लिए चुनौती नगर पालिका परिषद और नगर पंचायत के रिजल्ट ने बढ़ाई है. पार्टी को 89  नगरपालिका और 191 नगर पंचायत में जीत मिली है. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि इस बड़ी जीत के बाद भी पार्टी को 16 जिलों में एक भी सीट हासिल नहीं हुआ है. इन जिलों में बीजेपी एक भी नगर पालिका सीट नहीं जीत पाई है. ऐसे में पार्टी मिशन-80 की चुनौती बढ़ती हुई नजर आ रही है.

वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश में भाजपा की 64 लोक सभा सीटें हैं जबकि उसके सहयोगी अपना दल (एस) की दो सीटें हैं। पार्टी की अपने सांसदों पर पैनी अपने सांसदों पर पैनी निगाह है। अपने सांसदों की कार्यशैली, लोकप्रियता और जनता के बीच उनकी छवि के आकलन के लिए भाजपा गोपनीय तरीके से उनका रिपोर्ट कार्ड तैयार करा रही है। निकाय चुनाव को लोक सभा चुनाव के लिए पूर्वाभ्यास माना जा रहा था। ट्रिपल इंजन की सरकार बनाने के लिए भाजपा ने अपने सांसदों से भी निकाय चुनाव में पूरे मनोयोग से जुटने का आह्वान किया था।

जबकि निकाय चुनाव में पार्टी को कई सांसदों के क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा है। निकाय चुनाव के नतीजे आने के बाद पार्टी भले ही इसे अपनी ऐतिहासिक जीत बता रही है लेकिन वह हार के कारणों पर भी मंथन कर रही है। पार्टी को विभिन्न स्रोतों से मिल रहे फीडबैक के अनुसार कई स्थानों पर सांसदों के करीबी पार्टी से बगावत कर मैदान में उतरे तो कई जगहों पर उन्होंने भितरघात कर पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी को चुनाव में हराने में भूमिका निभाई।

ऐसे कुछ मामलों में सांसदों ने करीबियों को मूक समर्थन दिया। कई स्थानों पर अपने चहेते को टिकट न मिलने पर सांसद निकाय चुनाव में निष्क्रिय रहे। निकाय चुनाव का दायरा भले ही लोक सभा चुनाव से अलग हो, बावजूद इसके यह चुनाव कहीं न कहीं नगरों-महानगरों में सांसदों की लोकप्रियता और सक्रियता का संकेत भी हैं। भाजपा का लक्ष्य प्रदेश में लोकसभा की सभी सीटें जीतने का है।

ऐसे में वह अपने इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए जनता के बीच अपने सांसदों का निरपेक्ष और तथ्यपरक मूल्यांकन कर रही है। लोक सभा चुनाव के लिए पार्टी कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती हैै। लिहाजा सांसदों का रिपोर्ट कार्ड तैयार करने में निकाय चुनाव में उनकी भूमिका और परिणाम का भी ख्याल रखा जाएगा। ऐसे में खराब प्रदर्शन करने वाले सांसदों के टिकट कट सकते हैं।

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